घपले में फंसे आईएएस अफसरों को हाई कोर्ट से नहीं मिली राहत
बिलासपुर। एक हजार करोड़ स्र्पये के घपले में फंसे प्रदेश के सात आईएएस अफसर शुक्रवार को हाई कोर्ट पहुंचे। जस्टिस प्रशांत मिश्रा व जस्टिस गौतम चौरड़िया की डिवीजन बेंच के समक्ष फैसले पर पुनर्विचार करने की गुहार लगाते हुए रिव्यू पिटीशन दायर की। जस्टिस मिश्रा की अगुवाई वाली डिवीजन बेंच ने रिव्यू पिटीशन को स्वीकार करने से इन्कार करते हुए दोटूक कहा कि आप जहां आए है। वह जस्टिस मिश्रा व जस्टिस पीपी साहू की खंडपीठ नहीं है। जब वह खंडपीठ बैठेगी तब आप रिव्यू पिटीशन ला सकते हैं।
वर्ष 2013 से 2018 के बीच राज्य निशक्तजन स्रोत संस्थान फिजिकल रेफरल रिहेब्लिटेशन सेंटर में हुए एक हजार करोड़ स्र्पये के घोटाले में सात आईएएस अफसर व पांच राज्य सेवा संवर्ग के अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने का आदेश गुस्र्वार को डिवीजन बेंच ने जारी किया है।
सीबीआई को सात दिनों के भीतर घोटालेबाज अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और 15 दिनों के भीतर गड़बड़ियों से संबंधित दस्तावेज जब्त करने के निर्देश दिए हैं।
मामले की गंभीरता को देखते हुए शुक्रवार को प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड व सुनील कुजूर व एक पूर्व आईएएस एमके राउत के अलावा आधा दर्जन आईएएस अफसर हाई कोर्ट पहुंचे और जस्टिस प्रशांत मिश्रा व जस्टिस गौतम चौरड़िया की डिवीजन बेंच के समक्ष फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग करते हुए रिव्यू पिटीशन दायर करने की अनुमति मांगी ।
राज्य सरकार के रिव्यू को भी किया अस्वीकार
राज्य शासन की ओर से भी डिवीजन बेंच के समक्ष रिव्यू पिटीशन दायर किया गया था। जस्टिस मिश्रा ने शासन के आवेदन को भी अस्वीकार कर दिया। इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील देवर्षि ठाकुर ने डिवीजन बेंच के समक्ष दलील पेश की कि प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव अजय सिंह ने शपथ पत्र पेश कर डिवीजन बेंच के समक्ष स्वीकार किया है कि 150-200 करोड़ की गड़बड़ी हुई है। पूर्व चीफ सेक्रेटरी की स्वीकारोक्ति के बाद शासन की ओर से अचानक रिव्यू पिटीशन दायर करना समझ से परे है।
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