बांगड़ अस्पताल की लापरवाही ने  भीलवाड़ा को पहुंचाया तबाही के कगार पर

भीलवाड़ा अनिल-विजय। बृजेश बांगड़ मेमोरियल हॉस्पिटल की लापरवाही से भीलवाड़ा में फैले कोरोना संक्रमण जनजीवन के लिए तो खतरनाक साबित हो ही रहा है, लेकिन आने वाले दिनों में भीलवाड़ा का कपड़ा कारोबार चौपट हो जायेगा और लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा होने की आशंका बन गई है। 
भीलवाड़ा का नाम देश में कपड़े के बाद चिकित्सा के क्षेत्र में भी पहचाना जाने लगा था, लेकिन बृजेश बांगड़ मेमोरियल हॉस्पिटल की लापरवाही के चलते भीलवाड़ा शहर में ही नहीं आस-पास के जिलों के साथ-साथ चार अन्य प्रदेशों में भी जानलेवा कोरोना वायरस फैल गया। अभी तक इस बात का खुलासा कोई नहीं कर पाया कि वायरस स्त्रोत कौन है। सबसे पहले इस हॉस्पिटल के एक चिकित्सक सहित दो कर्मचारियों को उपचार के लिए जयपुर के निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया, लेकिन इसे गोपनीय रखा गया। इससे अस्पताल का पूरा स्टॉफ संक्रमण की जद में नहीं आया, बल्कि यहां उपचार करा रहे मरिज और ओपीडी में आये करीब 6 हजार लोग संक्रमण के दायरे में आ गये। यहां भर्ती रहे कई रोगी भीलवाड़ा के अलावा, राजसमंद, उदयपुर, चित्तौडग़ढ़, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, गुजरात आदि राज्यों के लोग भी चपेट में आ गये। समय रहते अगर संक्रमण की सूचना दे दी गई होती तो भीलवाड़ा का नाम न तो देश-विदेश में बदनाम होता और न ही यहां के लोगों की जान जोखिम में आती। यहां उपचार कराने वाले दो मरिजों की तो अब तक जान तक जा चुकी है और यहां उपचार कराने वाले लोगों व कर्मचारियों की संक्रमण के चलते सांसे फूली है। 
प्रदेश के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने भी कह दिया कि अस्पताल में बड़ी लापरवाही हुई है। जांच तो होगी, लेकिन जांच में क्या आयेगा और कौन दोषी होगा, इसे लेकर अभी से ही चर्चायें शुरू हो गई है। यह बाद की बात है, लेकिन पूरे शहर और चार प्रदेशों के लोगों की जान सांसत में लाने वाले बांगड़ हॉस्पिटल के कर्मचारी होटलों में इलाज ले रहे हैं, लेकिन शहर के मजदूर वर्ग भूखे मर रहा है। उनकी मजदूरी चली गई। खाने के लिये सामग्री नहीं। प्रशासन मदद पहुंचाने का हर संभव प्रयास कर रहा है, लेकिन अभी तक कई ऐसे लोग भी है, जिन तक कोई पहुंच नहीं पाया। प्रशासन के कंट्रोल रूम के नंबर पर कई लोगों ने अपनी पीड़ा बताई, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई। कांवाखेड़ा के हिरालाल नामक दिव्यांग ने बताया कि उसके यहां खाने के लिए कुछ नहीं बचा और उसकी मदद को कोई आगे नहीं आया है। ज्योतिनगर के विनोद वर्मा ने बताया कि आठ दिन में एक भी बार सामग्री वितरण के लिए कोई नहीं आया। ऐसी ही पीड़ा मालोला रोड़ और मालोला ग्राम के लोगों ने भी बयां की है। कावांखेड़ा कच्ची बस्ती, बीलिया, बंजारा बस्ति और शहर के बाहरी इलाकों में कृषि भूमि पर बनी कॉलोनियों में इक्का-दुक्का मकानों में रहने वाले लोगों के सामने भी ऐसा ही संकट आ खड़ा हुआ है। 
बांगड़ अस्पताल की तरह ही भीलवाड़ा के कई लोग भी इस जानलेवा बीमारी को गंभीरता से नहीं लेकर लापरवाही बरत रहे हैं, इसे लेकर जिला कलेक्टर राजेंद्र भट्ट ने यहां तक कहा कि भीलवाड़ा बारुद के ढेर पर है, नहीं चेते तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।  इसके बावजूद इतनी बड़ी विपत्ति के बाद प्रशासन ने तो चाक-चौबंद प्रबंध करने के तो पूरे प्रयास किये हैं, लेकिन कलेक्टर का कहना था कि निजी अस्पताल इस मामले में अभी तक आगे नहीं आये है। किसी ने पहल नहीं की कि वे इस रोग के मरिजों की देखरेख के लिए अपने चिकित्सक और सुविधा दें। अब सरकार ही इन्हें पाबंद करने जा रही है। 
  अस्पताल की लापरवाही के चलते अरबों रुपये के तले दबने के साथ ही भीलवाड़ा के लोगों की जान सांसत में आई हुई है। बच्चे हो या बुजुर्ग सभी घरों में कैद है। कोई दुग्ध के लिए तो कोई सब्जी के लिए तरस रहा है। पैसे जमा नहीं होने से किसी का बिजली कनेक्शन काट दिया गया है। यानि हालात बिगड़ते जा रहे हैं और सहायता के नाम पर कई उद्योग बढ़ चढ़कर आगे आये हैं, लेकिन बांगड़ अस्पताल को संचालित कर रहे कंचन ग्रुप ने 25 लाख देखकर सहानुभूति बटोरने का प्रयास किया, जिसे लेकर भी लोगों में खासा गुस्सा है कि भीलवाड़ा को आग में झोंकने वाले इस अस्पताल की इस राशि से उनकी मदद नहीं की जाये। 
उधर, कपड़ा व्यापारियों को यह चिंता सता रही है कि कफ्र्यू के बाद जब मंडी खुलेंगी तब भी संभलना आसान नहीं होगा। कपड़ा खरीदने के लिए बाहर से व्यापारी नहीं आयेंगे और संक्रमण के डर से इस कपड़ा मंडी को संक्रमण लग सकता है। 380 कपड़ा फैक्ट्रियों के सामने अगर संकट आया तो भीलवाड़ा बर्बाद हो जायेगा। भीलवाड़ा में आय का मुख्य स्त्रोत भी कपड़ा मंडी है। कपड़ा व्यापारियों के साथ-साथ हजारों मजदूर भी बेरोजगारी की कगार पर आ गये हैं। सरकार ने उद्योगपतियों को यह निर्देश तो दिया है कि वे लॉक डाउन के दौरान मजदूरों को भुगतान करें, लेकिन भीलवाड़ा के अधिकांश व्यापारियों की ऐसी स्थिति नहीं है कि वे कर्मचारियों को घर बैठे भुगतान कर सके।


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