बंद फैक्ट्रियां, कैसे करेंगे अप्रैल माह का मजदूरों को भुगतान, व्यापारी चिंतित

 
 भीलवाड़ा हलचल। वस्त्रनगरी भीलवाड़ा के उद्योगपति सरकार की नीतियों से अब परेशान नजर आने लगे हैं और कई यह कहते हुये सुनाई दे रहे हैं कि आने वाले दिन उनके लिये और दुखदायी होंगे। सरकार एक और तो बंद उद्योगों के बिजली के बिल माफ नहीं कर पा रही है और दूसरी और मजदूरों को पुरा वेतन दिलवाने के लिए दबाव बना रही है। अब कई फैक्ट्री मालिकों की स्थिति अप्रैल माह का भुगतान करने की नहीं है। ऐसी स्थिति में सरकार को कोई नीति बनानी चाहिये जिससे फैक्ट्री मालिक भी परेशान न हो और मजदूर भी। 
सूत्रों के अनुसार, भीलवाड़ा में करीब 400 कपड़ा फैक्ट्रियां है। इनमें हजारों मजदूर कार्यरत है। इन मजदूरों को मार्च का वेतन तो कार्यनुसार फैक्ट्री मालिकों ने चुका दिया और मजदूरों ने भी इस राशि से अपना गुजारा कर लिया, लेकिन आने वाले दिनों में स्थिति बिगडऩे वाली बताई जा रही है। फैक्ट्री मालिक ऐसी स्थिति में नहीं है कि मजदूरों को बिना काम के घर बैठे अप्रैल माह का भुगतान कर सके। ऐसे में मजदूरों के सामने खाने-पीने के लाले पड़ सकते हैं, जिससे वे विरोध के तैवर दिखा सकते हैं। इस तरह की आवाज उठने लगी है। कपड़ा कारोबार से जुड़े अधिकांश श्रमिकों को तो एकबार भुगतान कर दिया गया है, लेकिन कई ऐसे मजदूर भी है, जो सीधे फैक्ट्री मालिक से नहीं जुड़े हैं, जिन्हें किसी तरह की कोई सहायता नहीं मिल पाई है। 
एक बड़ी कपड़ा फैक्ट्री ने तो स्थायी मजदूरों को वेतन दे दिया, लेकिन इस फैक्ट्री में अस्थायी मजदूरों को उनकी एक दो दिन की बकाया राशि के अलावा कुछ नहीं दिया गया। कई मजदूरों तो ऐसे हैं, जिन्हें एक पैसा भी नहंी मिला है। इनमें असंगठित मजदूरों की संख्या काफी ज्यादा है। सरकार ने पंजीकृत मजदूरों को तो आर्थिक सहायता मुहैया करवाई है, लेकिन जो कहीं भी पंजीकृत नहीं है, उनके सामने संकट खड़ा है। 
जिला कांग्रेस कमेटी के महासचिव महेश सोनी ने बताया कि उद्योगपतियों के सामने कई दिक्कतें हैं। सरकार खुद गुजराभत्ते के रूप में एक हजार और ढाई हजार रुपये गरीब तबके को दे रही है, लेकिन फैक्ट्री मालिकों से पूरी तनख्वाह देने को कहा गया है। फैक्ट्रियां बंद है। उत्पादन नहीं हो रहा है, लेकिन बिजली का स्थायी शुल्क वसूला जा रहा है, जबकि पंजाब सरकार ने ऐसे शुल्क को माफ किया है। उन्होंने इसी तर्ज पर राजस्थान में भी शुल्क माफ करने की मांग की है। इसके अलावा जिन उद्योगपतियों ने ऋण लिया हुआ है, उन्हें राहत के नाम पर तीन माह तक नहीं चुकाने को कहा गया है, लेकिन तीन माह बाद एक प्रतिशत अतिरिक्त के साथ ये किश्तें चुकानी होगी, जबकि हालात काफी विपरित है। लॉकडाउन खुलने के बाद भी छह माह तक फैक्ट्रियां पूरी क्षमता से नहीं चल पायेगी और बकाया राशि की वसूली भी अभी होनी संभव नहीं है। ऐसे में फैक्ट्री मालिकों के सामने बड़ा संकट खड़ा होगा। 


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