विश्व मजदूर दिवस पर विशेष -मजदूर हुआ मजबूर , पापी पेट का है कसूर
राजसमन्द( राव दिलीप सिंह) कोरोना रूपी अदृश्य वैश्विक महामारी से जारी मानव संघर्ष के बीच , विश्व का असंख्य मजदूर अपने व अपने अपनों के पापी पेट की भूख मिटाने के लिए, मजबूर होकर बीच मझधार में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 134 वां व देश में 72 वां विश्व मजदूर दिवस मना रहा है ! जहां आज मजदूर वर्ग के सम्मान ,श्रमनिष्ठा व स्वाभिमान का दिवस है ! वही लाइलाज बहुरूपी लक्षणों वाले कोविड -19 वायरस की अघोषित व अनिर्णायक लड़ाई के चक्रव्यूह के बीच, अपनी कर्मस्थली व जन्मस्थली को छोड़ बीच रास्ते में, शासन-प्रशासन के नियमों में फंसा व मजबूर खड़ा नजर आ रहा है ! स्वास्थ्य जांच की परीक्षा में पैदल ही चल कर अथवा आश्रय स्थलों व क्वॉरेंटाइन सेंटरों पर ठहरने व बेचैनी के बीच अपना समय व्यतीत कर रहा है ! इस उम्मीद में कि उन्हें अपने गंतव्य तक पहुंचा दिया जाएगा !
संपूर्ण देश में घोषित लॉक डाउन के बीच कंपनियों , फैक्ट्रियों व निजी क्षेत्र के संस्थानों में काम कर रहे मजदूरों को निकाले जाने पर , अपने अपनों तक पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं ! इससे लाखों की संख्या में बेरोजगारी का आलम देखा जा सकता है, जो समृद्ध राष्ट्र निर्माण के सपने में कहीं व्यवधान डालने वाला सा लगता है !
वैश्विक कोरोना आपदा का संकट आने पर ही शासन-प्रशासन को भी आंकड़ों का मालूम चल रहा है कि कितना बड़ा मजदूर वर्ग रोजगार के लिए प्रवासन व आप्रवासन करता है ? जिसका शासन-प्रशासन के पास आज तक वास्तविक आंकड़ा उपलब्ध नहीं था ! कोरोना निगरानी दलों द्वारा किए जा रहे सर्वे से ही, वास्तविक स्थिति का मालूम चल रहा है ! जो प्रति राज्य लाखों की संख्या में अंतर जिला रोजगार या मजदूरी की तलाश प्रवासन करते हैं ! राजस्थान के प्रत्येक जिले में औसतन 40 से 50 हज़ार मजदूर अन्य जिलों में माइग्रेशन करते हैं ! जो रोजगार की गारंटी प्रदान किए जाने की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है !
देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मजदूर वर्ग को, उसकी जन्मस्थली पर ही ससम्मान ,उनकी दक्षता, कार्यकुशलता व योग्यता के आधार पर ,रोजगार दिए जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए ! एक सुदृढ़ श्रमिक नीति का निर्माण होना चाहिए, जिसमें इन श्रमिकों को स्वास्थ्य , शिक्षा , आवास, संतुलित भोजन, पेंशन जैसी अन्य सुविधाओं को दिया जाना सुनिश्चित हो !
देश व प्रदेशों में संचालित होटलों, फैक्ट्रियों, ईट भट्टा उद्योग, खनन उद्योग ,आदि में कार्यरत 14 से 18 वर्ष आयु वर्ग के बाल मजदूरों को भी मुक्त कराया जाना चाहिए ! बाल श्रम निषेध और नियमन अधिनियम 1986 की अक्षरसह अनुपालना सुनिश्चित होनी चाहिए !
बंधुआ मजदूरी प्रणाली उन्मूलन अधिनियम 1976 का उल्लंघन करने पर , कठोर दंडात्मक कार्रवाई किया जाना सुनिश्चित हो ! पुरुषों के समान ही महिलाओं को भी पारिश्रमिक मिले ! काम के बदले अनाज, गेहूं, चावल व अन्य खाने की सामग्री के स्थान पर , नगद राशि के भुगतान की व्यवस्था करवाई जानी चाहिए !
कोरोना संकट के बीच शासन प्रशासन और भामाशाह द्वारा श्रमिकों को भोजन, पानी ,आवास व स्वास्थ्य संबंधित व्यवस्थाएं दी जा रही है ! जो मजदूरों के स्वाभिमान व श्रम निष्ठा के प्रति सम्मान की एक अनुकरणीय पहल है ! उसके बदले स्वाभिमानी व मेहनती मजदूर वर्ग ने अपने नमक का फर्ज अदा करने के लिए , क्वॉरेंटाइन सेंटर्स पर विद्यालयों की मरम्मत, रंग रोगन और पेड़-पौधों का संरक्षण का जिम्मा ले रखा है ! जो उनकी ईमानदारी वफादारी व मेहनत की आदत को परिलक्षित करता है !
पर्यावरणविद कैलाश सामोता ने विचार रखा है कि महात्मा गांधी नरेगा कार्यक्रम के तहत ग्रामीण विकास कार्यों के साथ-साथ , मजदूरों को पेड़ पौधे लगाने , उनका संरक्षण करने, प्राकृतिक जल स्रोतों का जीर्णोद्धार करने तथा उन्हें पुनर्जीवित करने के कार्य में भी लगाया जाना चाहिए ! प्रकृति समृद्ध होगी तभी देश भी समृद्ध व खुशहाल होगा !
मजदूर दिवस के अवसर पर, संपूर्ण राष्ट्र और समाज को, राष्ट्र और समाज की प्रगति , समृद्धि और खुशहाली के लिए, श्रमिकों के योगदान को नमन करना चाहिए ! देश की उन्नति , श्रमिकों की समृद्धि पर ही निर्भर करती है !
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