ओपन माइक कल्चर ने बदला वस्त्रनगरी का लिटरेरी ट्रेंड
कभी साहित्य के शौकीन लोग कवि गलियों तो मुशायरे और शाम-ए-गजल जैसे कार्यक्रमों में जाना पसंद करते थे। इससे उनके साहित्यिक मन को सुकून भी मिल जाता था। वक्त के साथ ऐसे आयोजन धीरे-धीरे कम होने लगे। लेकिन शौक और शौकीन तो आज भी जिंदा है। शायद इसलिए शायर अहमद फराज ने फरमाया है - ना लहजे में ढलना चाहती है। गजल कपड़े बदलना चाहती है.. यानी वक्त के साथ ही अब कविता कसनी पढ़ने और सुनने के तरीकों में खासा बदलाव देखने को मिलने लगा है। भीलवाड़ा की साहित्यिक फिजा का भी इस तरह से ओपन माइक कल्चर ने बदला वस्त्रनगरी का लिटरेरी ट्रेंड है।
भीलवाड़ा के ही दो दोस्तों ने शुरूवात की नीलेश व्यास व अंशिता लड्ढा ने देखते ही देखते आज 6 जानो की टीम है जिसमे अर्श पांडे, ईशान शर्मा, मुकुल, प्रतिक अग्रवाल है। नीलेश व्यास ने बताया कि शुरुवात में काफी दिक्कतें आयी पर अब लोग आगे होकर बोलते है कि इवेंट कब है तो अच्छा लगता है। जहाँ लोगो को अपना टैलेंट बताने जयपुर, अजमेर जाना पड़ता था वही अब भीलवाड़ा में ही उन्हें अच्छा प्लेटफार्म मिलने लगा है। रोहित जोशी एवं प्रितेश आचार्य का हमेशा से सहयोग रहा।
शहर के टैलेंट को मंच प्रदान करने के लिए शहर में कई जगह ओपन माइक इवेंट हो रहे हैं जहां कवियों से लेकर रचनाकर, नाटककार, फिल्मकार और स्टोरीटेलर लोगों से रूबरू हो रहे है।
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