लिफाफा देखकर खत का मजमून भांप लेते हैं , अशोक गहलोत...! "

 

( ओम कसारा " ओमेन्द्र " )  राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तब से मेरे पसंदीदा राजनेता हैं जब 9 अगस्त 2003 को वो भीलवाड़ा में सोनी हॉस्पिटल का उद्घाटन करने आए थे । उस समय मैं मशहूर पहलवान कैलाश गुर्जर के साथ शहर के पहले लोकल चैनल " ए.ई.एन. न्यूज़ " का संचालन कर रहा था । लिहाजा सोनी हॉस्पिटल के रैंप पर खड़े - खड़े ही अशोक गहलोत का इंटरव्यू लेना प्रारंभ किया और वो बड़ी तन्मयता से प्रत्येक सवाल का जवाब देते चले गए । इस दरम्यान कुछ तीखे सवाल भी थे लेकिन अशोक गहलोत तनिक भी विचलित नहीं हुए और एक - दो नहीं अपितु पूरे पन्द्रह - सोलह  मिनट तक उन्होंने एक लोकल न्यूज़ चैनल से भी वैसे ही बात की जैसे क्षेत्रीय और राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल से करते हैं । अंत में बिना किसी जल्दबाजी के मुस्कुरा कर बोले , " कोई सवाल रह गया हो तो वह भी पूछ लो । " सचमुच दंग रह गया था मैं गहलोत की सादगी और आत्मीयता देखकर । उसी दिन मुझे लगा कि कांग्रेस में यदि कोई सच्चे अर्थों में गांधी को जीता है तो वो हैं , अशोक गहलोत ।


    गहलोत की सादगी का नजारा उस समय भी देखने को मिला था जब वो  गुजरात के विधानसभा चुनाव में पैदल चलते हुए घर-घर जाकर खुद अपने हाथों से मतदाताओं को मतदान के पर्चे वितरित कर रहे थे । उस चुनाव का परिणाम चाहे जो भी रहा हो लेकिन अपनी पार्टी के प्रति इतना समर्पण विरले कांग्रेसजन में ही देखने को मिलता है ।


    अब सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि इस सीधे - साधे इंसान में  राजनैतिक पैंतरेबाजी में पारंगत एक विराट जादूगर भी बसता है । जिसने पहले राज्यसभा चुनाव और फिर हाल ही में घटित राजनैतिक घटनाक्रम में अपने विरोधियों को ऐसी धोबी पछाड़ मारी कि वो घर के रहे ना घाट के...!  


        हालांकि पिक्चर अभी बाकी है और वर्तमान दौर में कब क्या हो जाए ? यह दावे के साथ कोई कुछ नहीं कह सकता । लेकिन इस बात में कोई संशय नहीं है कि यह बुलेटिन रिकॉर्ड किए जाने तक राजस्थान में अशोक गहलोत ने डंके की चोट पर वह सब कर दिखाया है जो कर्नाटक और मध्य प्रदेश  के कांग्रेस नेता नहीं कर पाए थे ।


     वैसे तस्वीर का दूसरा रुख यह भी है कि कांग्रेस ने राजस्थान में सरकार बचाने में भले ही सफलता हासिल कर ली हो लेकिन सचिन पायलट जैसे तेज - तर्रार युवा नेता को खोकर इसकी बहुत बड़ी कीमत भी चुकाई है ।  ओर यह प्रथम बार नहीं हुआ है बल्कि इसके ठीक पहले मध्य प्रदेश में भी हमने ज्योतिरादित्य सिंधिया को रेत की मानिंद कांग्रेस के हाथ से फिसलते देखा है ।


     इस संबंध में राजनैतिक पंडितों का मानना है कि ज्योतिरादित्य और सचिन को बागी तेवर अपनाने के लिए किसी और ने नहीं अपितु स्वयं सोनिया गांधी ने ही मजबूर किया है जो कि अपने बेटे राहुल गांधी के समक्ष किसी अन्य युवा नेता , यहां तक कि प्रियंका गांधी को भी एक सीमा से ज्यादा उभरते नहीं देखना चाहती । इस पुत्र मोह में असल नुकसान वर्षों पुरानी उस पार्टी को हो रहा है जिसका अस्तित्व में रहना सिर्फ कांग्रेसजनों के लिए ही नहीं अपितु भारत जैसे विशाल लोकतंत्र की रक्षा के लिए भी आवश्यक है । ऐसा इसलिए क्योंकि यदि विपक्ष मजबूत नहीं रहा तो सत्तारूढ़ दल के नेता निरंकुश और तानाशाह हो जाएंगे ।            ऐसे में मेरा मानना है कि अशोक गहलोत जैसे अनुभवी , सादगी पसंद , कर्मठ , कर्तव्यपरायण , निष्ठावान व पार्टी के प्रति पूर्णतः समर्पित राजनेता की भूमिका सिर्फ राजस्थान तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए अपितु तमाम सच्चे कांग्रेसजनों को मिलकर अशोक गहलोत को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने में ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए ।


 



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