दुनियाभर में डिमांड व सप्लाई में अंतर ने दी तेल को धार, जानें कैसे मिल सकती है रिलीफ

 


नई दिल्ली, । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की मांग और आपूर्ति में बढ़ रहे अंतर को देखते हुए इसकी कीमत में बहुत जल्द राहत की उम्मीद नहीं हैं। बैंक ऑफ अमेरिका व अन्य विदेशी एजेंसियों का अनुमान है कि ब्रेंट क्रूड का अंतरराष्ट्रीय दाम मार्च आखिर या अप्रैल तक 70 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच जाएगा। अभी यह 65 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है। हालांकि भारत कई बाजारों से कच्चे तेल की खरीदारी करता है, इस कारण देश में कच्चे तेल की कीमत ब्रेंट के मुकाबले लगभग तीन डॉलर कम होती है। विशेषज्ञों के मुताबिक कच्चे तेल के दाम में प्रति बैरल एक डॉलर की बढ़ोतरी से देश में पेट्रोल 55 पैसे और डीजल 58 पैसे प्रति लीटर महंगा हो जाता है। ऐसे में, राज्य व केंद्र सरकार की तरफ से अपने-अपने शुल्क में असर पड़ने लायक कटौती के बगैर पेट्रोल-डीजल की कीमतों से राहत नहीं मिलने वाली है। 

बढ़ रही है मांग

विश्व के तीन सबसे बड़े उपभोक्ता देश अमेरिका, चीन और भारत में कच्चे तेल की खपत में इस वर्ष बड़ी बढ़ोतरी की उम्मीद है। पेट्रोलियम निर्यात करने वाले देशों के समूह (ओपेक) के आंकड़ों के मुताबिक इस वर्ष अमेरिका में तेल की खपत पिछले वर्ष के मुकाबले 7.09 फीसद, चीन में 8.45 फीसद और भारत में 13.45 फीसद बढ़ेगी। एशिया के अन्य देशों में कच्चे तेल की खपत में इस साल 5.61 फीसद बढ़ोतरी का अनुमान है। 

कोरोना महामारी के टीकाकरण का असर दुनियाभर में दिखने लगा है और जनजीवन को सामान्य होता देख यह अनुमान जाहिर किया गया है। आपूर्ति में कमी की आशंकातेल उत्पादक देश उत्पादन में कटौती की योजना बना रहे हैं ताकि वे कच्चे तेल का दाम अपने लिए फायदेमंद स्तर पर रख सकें। गत 21 जनवरी को ओपेक और रूस की बैठक में तेल की आपूर्ति में कटौती का फैसला किया गया। मार्च के पहले सप्ताह में ओपेक की बैठक है जिसमें फिर से कच्चे तेल के उत्पादन और उनकी आपूर्ति पर फैसला हो सकता है।

मार्च के अंत तक आपूर्ति में रोजाना 77 लाख बैरल तक तक की कटौती की जा सकती है। दूसरी तरफ पिछले सप्ताह अमेरिका के टेक्सास में भारी बर्फबारी होने व बिजली कटौती के कारण तेल का उत्पादन प्रभावित हो गया। टेक्सास में रोजाना लगभग 40 लाख बैरल कच्चे तेल का उत्पादन होता है। यह अमेरिका की कुल रोजाना तेल की मांग के 40 फीसद हिस्से की आपूर्ति करता है। टेक्सास में स्थिति सामान्य नहीं हुई है, जिससे अमेरिका के तेल भंडार का गणित गड़बड़ाया है। 

भारत का व्यापार घाटा बढ़ेगा

कच्चे तेल का दाम बढ़ने से सिर्फ आम उपभोक्ता की जेब पर ही नहीं, सरकारी खजाने पर भी विपरीत असर पड़ता है। भारत तेल की करीब 85 फीसद जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर करता है। देश के आयात बिल में सर्वाधिक हिस्सेदारी पेट्रोलियम पदार्थों की होती है। इस वर्ष जनवरी में भारत ने 41.9 अरब डॉलर मूल्य का आयात किया, जिसमें अकेले पेट्रोलियम पदार्थो की हिस्सेदारी 9.4 करोड़ डॉलर मूल्य के बराबर थी।

क्या हैं विकल्प 

लगातार बढ़ रही तेल की कीमत की आंच से बचने के दो ही सर्वाधिक उपयुक्त रास्ते हैं। पहला कि केंद्र और राज्य सरकारें इसमें राहत दें और दूसरा वैकल्पिक ईधन। देर-सबेर वैकल्पिक ईंधन की ओर जाना ही होगा और उसकी शुरुआत भी हो गई है, लेकिन मंजिल बहुत दूर है। विशेषज्ञों का मानना है कि दुनियाभर में इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रोत्साहन का प्रयास शुरू हो गया है और अगले तीन से पांच वर्षो में दुनिया के विकसित देशों में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी 30 फीसद से अधिक हो जाएगी।

फिलहाल देश की सड़कों पर दौड़ रहे कुल वाहनों में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी दो फीसद से भी कम है। केंद्र सरकार इलेक्ट्रिक वाहन की बिक्री को प्रोत्साहित करने के लिए खरीदारी पर सब्सिडी भी दे रही है। लेकिन इलेक्ट्रिक वाहनों से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री गति नहीं पकड़ रही है।

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