दिल्ली में क्यों हो रही रिकार्डतोड़ बारिश? कब पड़ेगी कड़ाके की सर्दी? पढ़िये नामी मौसम विज्ञानी का इंटरव्यू
नई दिल्ली। पहले मानसून के देरी से आने, फिर रिकार्डतोड़ बारिश और अब इसकी वापसी में भी करीब दो सप्ताह का विलंब होने से इस बार हर कोई हैरान है। इस सीजन की बारिश जहां 46 साल का रिकार्ड तोड़ गई वहीं सितंबर की बारिश 121 सालों का रिकार्ड तोड़ने को है। हालांकि बारिश सभी जगह एक जैसी नहीं हो रही। क्या है इस तरह की बारिश होने का कारण और क्या कृषि जगत के लिए यह किसी खतरे का संकेत है? क्या अत्यधिक बारिश सर्दी के जल्दी आगमन का संकेत है? इन सभी सवालों को लेकर संजीव गुप्ता ने मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) के महानिदेशक डा. मृत्युंजय महापात्रा से लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश : क्या वजह है कि पहले तो इस साल मानसून 19 सालों में सर्वाधिक देरी से आया और अब वापसी में भी दो सप्ताह का विलंब हो रहा है? मानसून सभी जगह देरी से नहीं पहुंचा। इसे लार्ज स्केल सर्कुलेशन फीचर से जोड़कर देखा जाता है। सप्ताह भर के अंतराल को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती। केरल में यह लगभग समय पर ही आया था, हां दिल्ली में 15-16 दिन देरी से पहुंचा। इसके पीछे जलवायु परिवर्तन और अनुकूल मौसमी परिस्थितियां नहीं बनना रहा। मानसून के लंबा खिंचने की वजह बार-बार लो प्रेशर सिस्टम बनना है। अभी भी बंगाल की खाड़ी से अंतरदेशीय स्तर पर एक के बाद दो लो-प्रेशर सिस्टम बन रहे हैं। यह दोनों सिस्टम मध्य, पूर्व और उत्तर-पश्चिमी भारत के आसपास के हिस्सों में झमाझम बारिश देंगे, जिससे देश से मानसून की वापसी में देरी होगी। मानसून की बारिश के बदलते ट्रेंड पर क्या कहेंगे? या तो बारिश बिल्कुल नहीं होती और जब होती है तो रिकार्ड तोड़ देती है? यह मानसून की परिवर्तनशीलता का हिस्सा है। हालांकि इसके पीछे भी जलवायु परिवर्तन बहुत बड़ा कारण है। वर्षा के दिन कम हो गए हैं। हल्की बारिश भी अब ज्यादा नही होती। होती है तो रिकार्डतोड़ होती है और वह अगला पिछला सारा कोटा पूरा कर देती है। इसके पीछे स्थानीय कारण मसलन हरित क्षेत्र और वायु प्रदूषण का भी प्रभाव रहता है। एक और कारण है हीट आइलैंड। खुले क्षेत्र में बारिश कम और दिल्ली जैसे कंक्रीट के जंगल में कुल मात्रा में ज्यादा होने लगी है। दरअसल, जहां बिल्डिंग ज्यादा होती है वहां वेंटीलेशन कम होता जाता है। ऐसे में हवा ऊपर की तरफ जाती है, वाष्पीकरण भी होता है। इससे बादल बनते हैं और बारिश होने की अनुकूल परस्थितियां भी उत्पन्न होती हैं। मानसून का बदलता पैटर्न क्या फसलों के लिए नुकसानदायक नहीं है? हल्की बारिश भी फसलों के लिए बहुत जरूरी बताई जाती है। देखिए, मानसून का पैटर्न बदल रहा है तो फसल चक्र भी उसी हिसाब से तय होने लगा है। अब फसलों की बोआई और कटाई का शेडयूल भी बदल रहा है। जहां तक हल्की और भारी बारिश के फसलों पर असर का सवाल है तो किसान भी फसलें वही और उसी हिसाब से उगाने लगे हैं जो मौसम के अनुरूप अच्छा उत्पादन दे सकें। बारिश सभी जगह एक जैसी क्यों नहीं होती? दिल्ली में ही दो जिलों में 17 से 25 फीसद कम बारिश हुई है। दरअसल, बारिश के लिए कम दबाव का क्षेत्र (लो प्रेशर एरिया) बनना जरूरी है। यह बंगाल की खाड़ी से बनता है और देश के विभिन्न हिस्सों तक पहुंचता है। इसका प्रभाव जहां तक होता है, वहां अच्छी बारिश हो जाती है और जहां नहीं पहुंचता, वहां कम रह जाती है। हीट आइलैंड का प्रभाव तो खैर रहता ही है। अच्छी बारिश को क्या सर्दियों की जल्द दस्तक का संकेत माना जा सकता है? और क्या उम्मीद कर सकते हैं कि इस बार अच्छी ठंड पड़ेगी? अभी इस बारे में कुछ भी कह पाना मुश्किल होगा। फिलहाल तो पूरी तरह से मानसून ही खत्म नहीं हुआ है। हवाओं की दिशा बदलने में भी समय है। लिहाजा, सर्दियों के आगमन पर बाद में ही कुछ कहा जा सकेगा। अलबत्ता, अक्टूबर के उत्तरार्ध में तापमान गिरने लगेगा। नवंबर में सर्दी का अहसास होने लगेगा। कंपकंपाती सर्दी दिसंबर, जनवरी औैर फरवरी में पड़ेगी।
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