परिग्रह का परित्याग कर परिणामों को आत्मकेन्द्रित करना ही उत्तम आकिंचन्य धर्म - मुनि शुभम सागर
भीलवाड़ाBHN. सुपार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर हाऊसिंग बोर्ड शास्त्रीनगर में पर्यूषण के नवां दिन उत्तम आकिंचन्य धर्म पर बताते हुए मुनि शुभम सागर ने बताया कि किंचित मात्र भी मेरा ऐसा भाव उत्तम आकिंचन्य धर्म है। परिग्रह का परित्याग कर परिणामों को आत्मकेन्द्रित करना, कषायों और मिथ्यात्व के अभाव रूप होने से, हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील प्रवृतियॉ मोह-राग-द्वेष विकारी भाव परिग्रह, पर पदार्थ पर के लक्ष्य से आत्मा में उत्पन्न होने वाले मोह-राग-द्वेष के भाव आत्मा के नहीं है उनसे विरत होना, उन्हंे छोड़ना एवं अपने स्वरूप को पहचानने, मैं और मेरे पन का त्याग करना एवं पर पदार्थों, परिग्रहों के प्रति ममत्व भाव त्यागना उत्तम आकिंचन्य धर्म है। संसार के सारे परिग्रह मोक्ष का मार्ग प्रशस्त नहीं करते, अतः इनसे छुकारा पाकर आत्मा के वास्तविक रूप को समझ कर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करना चाहिये। |
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