काले पानी पर "गोलमाल" जवाब दे गए प्रदूषण नियंत्रण मंडल के "मुखिया

 


 
भीलवाड़ा सुशील चौहान। प्रोसेस हॉउस द्वारा नदियों में छोड़े जा रहे केमिकल युक्त वाले पानी के कारण ग्रामीण व किसानों के दुश्वार होते जीवन के सवाल पर मीडिया के सवाल पर गोल माल जवाब देकर निकल लिए। अचरज इस बात का रहा कि *बार बार* पूछे गए सवाल पर  *नापे* गए शब्दों में नब्बे प्रतिशत प्रोसेस हाउसों को *क्लीन चिट* भी दे दी। बकौल नवीन महाजन जो प्रदूषण नियंत्रण मंडल के *हाकम* यानी *अध्यक्ष* है, ने केवल *दस प्रतिशत* के लिए *शंका* जताई कि *वे ऐसे करते होंगे*।
जबकि हकीकत यह हैं कि चितौड़गढ़ रोड़ पर लगी फैक्ट्रियां रोजाना काला पानी उगलती हैं, लेकिन स्थानीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अधिकारियों को यह दिखाई नहीं देता हैं। क्योंकि उनकी स्थिति तो *बापू के तीन बंदर* वाली *बुरा मत देखो*,*बुरा मत कहो* और *बुरा मत सुनो*। क्योंकि *बापू की छाप* में बहुत *ताकत* हैं।  ग्रामीणों ने कई मर्तबा मंडल, स्थानीय अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के सामने अपने दु:खड़े रोए लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। 
अब हालात यह हैं सबसे ज्यादा काले पानी का *दंश* झेल रहा हैं तो *गुवाड़ी का नाला* जहां हर प्रोसेस हाउस का काला पानी *अठखेलियां* करता निकलता हैं। कुछ नामी प्रोसेस हाउस ने तो सिद्धांत बन रखा हैं काला पानी छोड़ना तो उनका जन्म सिद्ध अधिकार हैं। उनके काले पानी का कोई *अ-नंत* नहीं चाहे *तीर की वारी* चले या जब तक उनके प्रोसेस हाउस *सुपर* *गोल्ड* यानी *धन* उगलते रहेंगे  वो नहीं मानेंगे।
अब जरा इनकी तरकीब देखिए जिन कुओं से प्रोसेस के लिए पाइप लाइन जरिए शुद्ध पानी लेते हैं उसी शुद्ध पानी के जरिए रात में अपने काले कारनामों का पानी छोड़ते हैं। बस इसके। लिए उन्हें केवल *वाल्व* बदलना पड़ता हैं और वाल्व को बदलने के लिए अलग से कर्मचारी रख रखे हैं। उनकी ड्यूटी केवल यह हैं की रात होते ही कुओं से आने वाली पाइप लाइन का *वाल्व बदलना*। यह प्रक्रिया पूरी रात चलती हैं। सूरज की पहली किरण के साथ पाइप लाइन फिर उगलने लगती हैं शुद्ध पानी। पूरी रात प्रोसेस हाउसों का काला पानी अपनी छाप छोड़ देता हैं। 
इन्हीं सभी प्रोसेस हाउस के कारण मंडफिया, स्वरूप गंज,बिलिया और मंगरोप तथा बनास नदी के किनारे बसें गांवों की उपज वाली जमीन बंजर में तब्दील हो गई हैं। स्थानीय लोग जहां पहले क्षेत्र के कुओं से अपनी प्यास बुझाते थे। अब इन कुओं के पानी को ना तो इंसान हाथ लगाते हैं और ना ही * जानवर  कुओं के पास बनी *खेळ* में मुंह डालते हैं। ग्रामीणों को कुछ राहत मिली तो चम्बल के पानी से वरना कई सालों से दूषित पानी पीकर अपने जीवन से खिलवाड़ कर रहें हैं। इन सबके बाद भी प्रदूषण के राजस्थान मुखिया कह गए कुछ ही हैं। उन्हें भी ठीक करेंगे। स्थानीय प्रदूषण मंडल के अधिकारी तो *चुप्पी साधे* हुए हैं। 
कोई भी प्रशासनिक अधिकारी भी इस दिशा में कदम नहीं उठाता हैं। हां एक बार जिले के तत्कालीन आला *हाकम* के.के पाठक साब ने जरूर इस दिशा में कदम उठाए थे। वो उस समय उन प्रोसेस हाउस में घुस गए जहां से काला पानी *कलकल* बह रहा था। तब प्रदूषण मंडल के अधिकारियों के चेहरे देखने लायक थे। मगर प्रोसेस हाऊस के मालिकों को पाठक साब मन को नहीं भाए। और उन्हे जिले से जाना पड़ा, लेकिन वो प्रोसेस की फाइलों में ऐसा कर गए कि प्रोसेस हाउस मालिक उस पीड़ा को भूल नहीं पा रहे हैं। पाठक साब की *देन हैं कि प्रोसेस हाउसों को *टीटमेंट* प्लान लगाने पड़े।
 कुल मिलाकर कोई भी अधिकारी आ जाए लेकिन *बनास नदी* को *काले पानी* से *निजात* नहीं दिला सकते। प्रदूषण मंडल के *मुखिया* *दो दिन* जिले में रहे, लेकिन *प्रोसेस हाऊसों* की तरफ *रूख* तक नहीं किया।
        

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