नर्मदा नदी की परिक्रमा को निकले शर्मा पहुंचे अमरकंटक

 

शाहपुरा-मूलचन्द पेसवानी शाहपुरा से नर्मदा नदी की परिक्रमा करने निकले पं जगदीश चंद्र शर्मा अमरकंटक पहुंच गये है। लगभग चार हजार किलोमीटर की पदयात्रा करने वाले वाले वो शाहपुरा के पहले व्यक्ति है। साढे तीन माह पूर्व ओंकारेश्वर से पदयात्रा के रूप में रवाना हुए पं जगदीश चंद्र शर्मा वर्तमान में अमरकंटक पहुंच चुके है। उनकी परिक्रमा की पदयात्रा शिवरात्रि तक पूर्ण होगी। अब तक वो चार राज्यों के लगभग 125 शहरों से होकर अमरकंटक पहुंचे है। पं जगदीश चंद्र शर्मा ने सड़क मार्ग के बजाय नदी के किनारे किनारे पहाड़ी व कंटीले मार्ग को चुका है। सर्दी के इस सितम में भी उनकी पदयात्रा अनवरत जारी है। प्रतिदिन लगभग 20 किलोमीटर पं शर्मा पैदल चल कर इस पड़ाव पर पहुंचे है।
बुधवार को शाहपुरा तहसील के प्रतापपुरा में स्थित मृत्युजंय मन्दिर से गोविंदसिंह राणावत की अगुवाई में शिव साधकों का दल अमरकंटक पहुंचा। वहां तुरीय आश्रम में पं जगदीश चंद्र शर्मा का अभिनंदन किया।
शाहपुरा तहसील के शिवपुरी ग्राम निवासी पं जगदीश चंद्र शर्मा का कहना है कि इच्छा शक्ति मजबूत हो तो दुनिया का कोई काम नामुमकिन नहीं है। व्यक्ति को अपनी ताकत पहचानना चाहिए। मन की इच्छाओं को पूरा करना चाहिए। समय से ज्यादा कीमती कुछ भी नहीं है। पं जगदीश चंद्र शर्मा ने पांच माह में मां नर्मदा नदी की परिक्रमा करने का लक्ष्य रखा है।
सुबह 5 से शाम 5 बजे तक प्रतिदिन 20 किलोमीटर तक पैदल चलते हैं, जहां शाम हो जाती है वहां विश्राम, साथ में बिस्तर खाना बनाने के बर्तन कपड़े लेकर चल रहे है। रास्ते में इन मार्गों से जंगल, बीहड़ से अकेले गुजरते हैं। रात नदी किनारे के नगर, कस्बे के मंदिर, सराय, धर्मशाला में रुकते है। सूरज ढलने पर भोजन कर अगली सुबह फिर निकल पड़ते हैं। पं जगदीश चंद्र शर्मा का मानना है कि नर्मदा मध्यप्रदेश की जीवन रेखा है। नर्मदा को स्वच्छ रखने का प्रयास करना चाहिए। ताकि मां नर्मदा का स्वरूप सुंदर बना रहे।
पं जगदीश चंद्र शर्मा ने बताया कि नर्मदा जी वैराग्य की अधिष्ठात्री मूर्तिमान स्वरूप है। गंगा जी ज्ञान की, यमुना जी भक्ति की, ब्रह्मपुत्रा तेज की, गोदावरी ऐश्वर्य की, कृष्णा कामना की और सरस्वती जी विवेक के प्रतिष्ठान के लिये संसार में आई हैं। सारा संसार इनकी निर्मलता और ओजस्विता व मांगलिक भाव के कारण आदर करता है व श्रद्धा से पूजन करता है। मानव जीवन में जल का विशेष महत्व होता है। यही महत्व जीवन को स्वार्थ, परमार्थ से जोडता है। प्रकृति और मानव का गहरा संबंध है। नर्मदा तटवासी माँ नर्मदा के करुणामय व वात्सल्य स्वरूप को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। बडी श्रद्धा से पैदल चलते हुए इनकी परिक्रमा करते हैं।
उल्लेखनीय है कि अमरकंटक नर्मदा नदी, सोन नदी और जोहिला नदी का उदगम स्थान है। यह हिंदुओं का पवित्र स्थल है। मैकाल की पहाडियों में स्थित अमरकंटक मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले का लोकप्रिय हिन्दू तीर्थस्थल है। समुद्र तल से 1065 मीटर ऊंचे इस स्थान पर ही मध्य भारत के विंध्य और सतपुड़ा की पहाडियों का मेल होता है। चारों ओर से टीक और महुआ के पेड़ो से घिरे अमरकंटक से ही नर्मदा और सोन नदी की उत्पत्ति होती है। नर्मदा नदी यहां से पश्चिम की तरफ और सोन नदी पूर्व दिशा में बहती है। यहां के खूबसूरत झरने, पवित्र तालाब, ऊंची पहाडियों और शांत वातावरण सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। अमरकंटक का बहुत सी परंपराओं और किवदंतियों से संबंध रहा है। कहा जाता है कि भगवान शिव की पुत्री नर्मदा जीवनदायिनी नदी के रूप में यहां से बहती है। माता नर्मदा को समर्पित यहां अनेक मंदिर बने हुए हैं, जिन्हें दुर्गा की प्रतिमूर्ति माना जाता है।

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